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बसन्त ताटी को नही है आदिवासी संस्कृति की जानकारी जबरन इतिहासकार बनने की कोशिश ना करें-अल्वा मदनैया

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कुशल चोपड़ा बीजापुर

बीजापुर-पिछले दिनों भोपालपट्टनम के कांग्रेस नेता बसन्त ताटी ने ब्लाक मुख्यालय के सकनापल्ली गांव में जाकर गोंड जनजाति के दोरला समुदाय को घुंघरू भेंट कर उनकी संस्कृति को प्रोत्साहित करने की बात कहकर प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी।

जिसको लेकर गोंडवाना समन्वय समिति के अध्यक्ष अल्वा मदनैया ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कहा कि बसन्त ताटी पहले अपनी जानकारी दुरस्त कर ले।बसन्त ताटी को झूठी वाहवाही बटोरने से पहले ये तो पता कर लेना था की भोपालपट्टनम क्षेत्र में कंही दोरला समुदाय के रहते भी है कि नही।वास्तविकता ये ही कि यंहा केवल गोंड एंव मुरिया जनजाति के समूह के लोग ही निवास करते है।श्री मदनैया ने बसन्त ताटी से कहा कि अगर आदिवासी संस्कृति की जानकारी नही है तो जबरन आप इतिहासकार बनने की कोशिश न करें,दूसरी तरफ आपको आदिवासी संस्कृति की कतई जानकारी नही है आदिवासी समाज मे कंही पर भी पूजा- अनुष्ठान नही होता है,आदिवसी संस्कृति और जीवन दर्शन को समझना आपके बस की बात नही।आदिवासी संस्कृति में अर्जी-विनती कर पेन-पुरखो को भेंट चढ़ाते है जबकि पूजा अनुष्ठान हिंदुओ की परम्परा है आदिवासियों की नही।आपने कहा कि उनके पास पारम्परिक वेशभूषा और वाद्य यंत्र के अभाव होने की वजह से राज्य या रास्ट्रीय आयोजनों में भाग लेने में संकोच करते है जबकि संकोच तो उन्हें होता है जिनका व्यवसाय नाचना जीने के लिए भरणपोषण के लिए जरूरी है।नाचना , गाना बजाना तो हमारे समुदाय के जीवन का अंग है , हमारी संस्कृति बाजारू या राज्य स्तर पर गाने बजाने के लिए नही है।हम तो अपने लिए नाचते एंव गाते है और रही बात राज्य एंव राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन की तो वँहा तो हमारे संस्कृति का शोषण ही हुआ है।आज तक रास्ट्रीय या राज्य स्तर पर नाचने गाने वालो को केवल अपमान ही मिला है प्रदर्शन के नाम पर चंद पैसे देकर हमे सन्तुष्ट कर देते है बदले में अपना स्वार्थ पूरा कर लेते है।बसन्त ताटी आप घुंघरू बांटने के बजाय आदिवासियों के साथ हो रहे अन्याय,अत्याचार और शोषण के खिलाफ आवाज उठाये होते तो अच्छा होता।आपके जिला पंचायत क्षेत्र के लोग जो 70 से 80 किलोमीटर पैदल चलकर राशन लेने भूखे प्यासे आते है उनकी सुध लिए होते तो अच्छा होता।घुंघरू बांटने के बजाय आदिवासियों के लिए रोटी कपड़ा और मकान दिलाने का संकल्प लेते तो अच्छा होता।आदिवासी संस्कृति के बारे में आपको चिंता करने की जरूरत नही है।आदिवासी संस्क्रति को सहेजने ओर संवारने की जिम्मेदारी आदिवासियों पर छोड़ दीजिए जबरन अपने प्रचार प्रसार के लिए उनका इस्तेमाल न करे।