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विशेष लेख -देश के लोगों को मुफ्तखोर बनाने की बजाय- आत्मनिर्भर बनाया जाए

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देश के लोगों को मुफ्तखोर  बनाने की बजाय- आत्मनिर्भर बनाया जाए*                              

स्वामी विवेकानंद जी कहते हैं कि किसी इंसान को आप मुफ्त की रोटी खिलाकर एक दिन, या कुछ दिन उसका पेट भर सकते हैं। इससे बेहतर यह होगा कि आप मैं यदि काबिलियत है- या आप उस लायक हो तो आप किसी इंसान को रोटी कमाना सिखाइए- आत्मनिर्भर बनाना सिखाइए, जिससे उसका जीवन और भविष्य संवर जाएगा। देश के वर्तमान प्रधानमंत्री का भी यही नारा है- कि आओ भारत को आत्मनिर्भर बनाएं, आत्मनिर्भरता की ओर बढ़े मदद करना सहायता करना एक अलग प्रक्रिया है, किंतु पूरी कोशिश यह होना चाहिए कि हमारे देश का हर नागरिक आत्मनिर्भर हो। जो अपने श्रम के द्वारा अपने जीविकोपार्जन की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें,और हमारा देश जब तक आत्मनिर्भर नहीं बन सकता जब तक हमारे देश के राजनीतिक दल मुफ्तखोरी की राजनीति करना बंद नहीं करते, मुफ्तखोरी की राजनीति से देश की अर्थव्यवस्था कमजोर होती है देश अव्यवस्थित होता है। और देश के मध्यम श्रेणी और ऐसे लोग जिनको मुफ्त की सुविधाएं नहीं मिल पाती उनके मन में द्वेष की भावना पैदा होती है, इसके पीछे का कारण जो भी हो जातिगत हो या कोई अन्य कारण हो। यदि हमारे देश का हर व्यक्ति ईमानदार हो जाए- तो हम इस सपने को साकार कर सकते हैं। ईमानदारी देश को आत्मनिर्भर बनाने का सबसे बड़ा गुण बन सकता है,यदि भारत का प्रत्येक नागरिक ईमानदार हो जाए तो हमारे देश के जितने सरकारी संस्थान चल रहे हैं, लोकतंत्र के द्वारा जितने भी देश की उन्नति के कार्य चल रहे हैं। उन सब में यदि पूर्ण ईमानदारी बरती जाए तो हमारे देश के ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलेगा। और हमारे देश के सरकारी उद्योग और लोकतंत्र द्वारा संचालित सरकारी कार्यों में यदि पूर्ण ईमानदारी बरती जाए- तो हमारे देश के सरकारी कारखाने सरकारी संस्थान और लोकतंत्र द्वारा संचालित लोकतंत्र की प्रक्रिया द्वारा संचालित निर्माण और देश उन्नति के कार्य फ़लेंगे- फ़ूलेंगे। जिसके कारण हमारा देश तरक्की की ओर अग्रसर होगा- हमारे देश के ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार प्राप्त होगा, जिससे लोग आत्मनिर्भर बनेंगे, हमारे देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए हमारे देश के लोकतंत्र से जुड़े  लोकतांत्रिक व्यवस्था से जुड़े शासन प्रशासन के लोगों को  जागरूक रहना पड़ेगा, और अपने देश के प्रति समर्पण की भावना मन में रखनी होगी। इसके लिए 2 सूत्रीय कार्यक्रम  पर विशेष ध्यान देना होगा पहला कामचोरी ना हो  दूसरा देश के समस्त कार्यों में 100 प्रतिशत ईमानदारी बरती जाए, हम जिस देश की रोटी खाते हैं, हमें उस देश के प्रति वफादार ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ रहना होगा, यही हमारे देश की आत्मनिर्भरता और हमारे देश के प्रत्येक नागरिक की आत्मनिर्भरता का मूल सूत्र है मूल मंत्र है। हमारे देश के लोकतंत्र में भी सुधार की आवश्यकता है हमारे देश में जो चुनाव होते हैं उनके घोषणा पत्रों में मुफ्तखोरी और देश को दीमक की तरह चाट ने वाले वायदे कदापि ना हो, हमारे देश की बर्बादी के यही सबसे बड़े कारण हैं। राजनीतिक दलों को तो सिर्फ सत्ता का मोह होता है, मुफ्तखोरी का लालच देकर सत्ता तक पहुंचना आजकल राजनीतिक पार्टियों का एक जरिया बन गया है जो देश की जनता और देश की बर्बादी का मुख्य कारण है इस पर चुनाव आयोग को कड़े नियमों के द्वारा रोक लगाए जाने की आवश्यकता है राजनीतिक दलों का सत्ता तक पहुंचना जिसका मुख्य कारण देश सेवा कदापि नहीं हो सकती देश से मेवा खाना और उसमें से थोड़ा बहुत जनता को बांट देना यही उनका मुख्य उद्देश होता है। हमारे देश के चुनावों के घोषणा पत्रों में, मुफ्तखोरी की योजनाओं पर और जातिवादी योजनाओं पर चुनाव आयोग को भारत सरकार को राष्ट्रपति महोदय को देश हित में प्रतिबंध लगाए जाने की आवश्यकता है, राजनीतिक दल कभी भी नहीं चाहेंगे कि- इस प्रकार की प्रक्रियाओं पर रोक लगे क्योंकि प्रदेशों और देश में राज करने का उनके लिए यही एक आसान तरीका है, जिसके जरिए वे आसानी से सत्ता तक पहुंच जाते हैं। यदि वास्तव में हमारे देश को आत्मनिर्भर बनाना है, तो हमारे देश के प्रत्येक नागरिक को उसके पहले आत्मनिर्भर बनाना होगा, जब हमारे देश का हर नागरिक आत्मनिर्भर होगा तभी तो हमारा देश आत्मनिर्भर होगा।  मुफ्त की चीजें बांटने से देश की जनता श्रम चोर और अलाल बनती है। देश की प्रगति और उन्नति में उसकी कोई भूमिका नहीं होती, यदि हमारे देश के प्रत्येक लायक नागरिक कि देश की उन्नति और प्रगति में भागीदारी हो तो, हमारा देश कैसे महान नहीं बनेगा। हमारा देश कैसे आत्मनिर्भर नहीं बनेगा, हमारा देश कैसे विकसित देश नहीं बनेगा। जरूरत है हर लायक हाथ को काम की हमारे देश में काम चोरी और भ्रष्टाचार बहुत ज्यादा मात्रा में होता है। इसी कारण हमारा देश विकसित देश नहीं बन पा रहा है, कामचोरी और भ्रष्टाचार इसके सबसे बड़े बाधक हैं, तीसरा बाधक है लोगों को व्यर्थ की मुफ्त की चीजें बांटना कम से कम बिना किसी भेदभाव के गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले या जिनकी वार्षिक आय पांच लाख रुपये सालाना से कम हो उन्हें लागत मूल्य पर अनाज आदि चीजें उपलब्ध कराई जाएं तो कम से कम देश की अर्थव्यवस्था तो चौपट नहीं होगी, क्योंकि आय और व्यय बराबर हो जाएंगे, लागत मूल्य पर चीजें उपलब्ध कराने में, इतना ज्यादा नुकसान नहीं है। जैसे ही गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों की वार्षिक आय पांच लाख रुपये से ऊपर होती है उन्हें सामान्य सुविधाएं दिया जाना देश हित में उचित होगा, देशहित से के लिए समस्त भेदभाव को मिटा देना चाहिए और भारत के प्रत्येक नागरिक को केवल एक नागरिक के नाम से जाना जाना चाहिए। बाकी सब उसकी व्यक्तिगत चीजें हैं, जब तक हमारे देश की राजनीतिक पार्टियों में यह जागृति नहीं आएगी- कि यदि देश हित का कोई कार्य हो रहा है तो उसका समर्थन करें- उनकी निगाहें केवल और केवल सत्ता पाने के लिए टिकी रहती हैं। वह चाहे राज्य सरकार के लिए हो या केंद्रीय सरकार के लिए राजनीति आजकल सेवा नहीं देश मेवा हो गई है। कुछ प्रतिशत हैं- जो वास्तव में आज भी देश सेवक हैं। और देश सेवा करना चाहते हैं, किंतु प्रतिशत कम होने के कारण ऐसे लोगों पर भारी दबाव बनाया जाता है। इनके विषय में भारी भ्रम फैलाया जाता है, ताकि उनकी अच्छाइयां दब जाएं, ताकि लोग अच्छाइयों,और सच्चाईयों से दूर रहें। भ्रम में अपना जीवन व्यतीत करें, मुफ्त खोर बने रहे आत्मनिर्भर ना बने- अधिकांश राजनीतिक दल यही चाहते हैं कि देश की आम जनता आत्मनिर्भर ना बने जानकार ना बने मुफ्त खोरी की खाए और केवल एक वोटर बन कर रहे।