बीजापुर. छत्तीसगढ़ के बीजापुर में कई दिनों से भारी बरसात हो रही है। नदी और नाले, ओवरफ्लो हैं। जवानों को अपनी मूलभूत जरुरतें पूरी करने के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। कई बार जवानों की बैरक पानी से भर जाती हैं। कैंप में रोजमर्रा की वस्तुओं की सप्लाई बाधित होती है। जवानों को अपने कंधों पर सामान लादकर कैंप तक लाना पड़ता है।
देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल ‘सीआरपीएफ’ के जवानों और अधिकारियों ने दुर्दांत नक्सलियों के गढ़ ‘बीजापुर’ के गांव ‘चुटवाही’ में 72 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद सिपाही पी. आनंद राव को घर के लिए रवाना किया। इलाके में पिछले 27 दिन से लगातार बरसात हो रही थी। नदी-नाले उफान पर थे। सड़क मार्ग, कट चुके थे। आनंद राव के पिता का देहांत हो गया था। किसी भी तरह राव को घने जंगल से सुरक्षित बाहर निकालकर, उसके घर तक पहुंचाना था। सीआरपीएफ की 153 वीं बटालियन और कोबरा 210 के जवानों/अफसरों ने नक्सली हमले के बड़े खतरे के बीच जवान को जंगल से बाहर निकाला। तीन दिन बाद जवान आनंद राव, अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल हुए।
सूत्रों के मुताबिक, छत्तीसगढ़ के बीजापुर में कई दिनों से भारी बरसात हो रही है। नदी और नाले, ओवरफ्लो हैं। जवानों को अपनी मूलभूत जरुरतें पूरी करने के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। कई बार जवानों की बैरक पानी से भर जाती हैं। कैंप में रोजमर्रा की वस्तुओं की सप्लाई बाधित होती है। जवानों को अपने कंधों पर सामान लादकर कैंप तक लाना पड़ता है। 153 वीं बटालियन के सिपाही पी. आनंद राव की तैनाती चुटवाही गांव के निकट स्थित सीआरपीएफ के फॉरवर्ड आपरेटिंग बेस ‘एफओबी’ पर थी।
पांच अगस्त की रात को सूचना मिली कि तेलंगाना निवासी आनंद राव के पिता का निधन हो गया है। फॉरवर्ड आपरेटिंग बेस के आसपास लगातार बरसात हो रही थी। नदी नालों में पानी का तेज बहाव था। पी. आनंद राव ने पिता के निधन की सूचना अपने अधिकारियों को दी। बटालियन के अधिकारियों ने तुरंत आनंद राव को सुरक्षित घर तक पहुंचाने के टॉस्क पर काम करना शुरु कर दिया। इस राह में सबसे बड़ी बरसात थी। चार सप्ताह से लगातार बरसात हो रही थी। ऐसे में सड़क बीच से कट चुकी थी। दूसरी जगहों पर भी भूमि कटाव हो गया था। एफओबी के निकट ही एक बड़ा नाला था। उसे पार करने के बाद ही मुख्य मार्ग तक पहुंचा जा सकता था। रास्ते में कई दूसरे बरसाती नाले भी थे। पांच अगस्त से लेकर सात अगस्त तक नाला पार करने के लिए पांच प्रयास किए गए। लोकल लड़कों की मदद ली गई। बुधवार को जब पानी का बहाव कुछ कम हुआ तो जवान को नाला पार कराया गया।
इसके बाद भी मुसीबतें कम नहीं हो रही थी। वजह, कई जगहों पर सड़क मार्ग बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके थे। वहां भी अस्थायी तौर से रास्ता बनाकर सिपाही को आगे रवाना किया गया। मुख्य मार्ग से सिपाही को बटानियन की गाड़ी मुहैया कराई गई। उसमें बैठकर, सिपाही तेलंगाना के वारंगल पहुंचा। पी. आनंद राव के पहुंचने के बाद उसके पिता का अंतिम संस्कार हुआ।
सूत्रों का कहना है, जंगल में मौसम बहुत खराब है। यहां पर चौपर का उतरना संभव नहीं है। सीआरपीएफ की यूनिटों में रोजमर्रा की जरुरत का सामान पहुंचाने के लिए जवानों को कड़ी मशक्कत का सामना करना पड़ रहा है। रोड कट चुके हैं। किसी भी तरह की आपदा से निपटने के लिए मेडिकल टीम, कैंप में मौजूद रहती है। सांप के काटने की घटनाएं होती रहती हैं। इन सब बाधाओं के बावजूद, जवानों और अधिकारियों का हौसला कायम है। अगर उन्हें नक्सलियों को लेकर कोई इनपुट मिलता है तो वे भारी बरसात के बीच अपने टारगेट की तरफ निकल पड़ते हैं।