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अमान्य और शून्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को भी माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हक मिलेगा – सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने कहा है अमान्य और शून्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को भी माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हक मिलेगा। ऐसे बच्चों को भी वैध कानूनी वारिसों के साथ हिस्सा मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह नई व्यवस्था दी। अब तक ऐसी संतानों को माता- पिता की स्वत: अर्जित संपत्ति में ही हिस्सा मिलता था। हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 16(3) का दायरा बढ़ाया गया है। 11 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का निपटारा किया।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा का यह अहम फैसला शुक्रवार को आया।
हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 16(3) में कहा गया है कि अमान्य और शून्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को माता-पिता की पैतृक संपत्ति में अधिकार नहीं होगा। अदालत को तय करना था कि किसी अमान्य और शून्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को हिंदू कानून के अनुसार माता-पिता की पैतृक संपत्ति में अधिकार है या नहीं? साथ ही पिता की मृत्यु से पहले मां-पिता दोनों अलग हो जाते हैं तो ऐसी स्थिति में पैदा हुआ बच्चा पिता पक्ष की विरासत में मिली संपत्ति का हकदार होगा या नहीं?
सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 16(3) का दायरा बढ़ाने से होने वाले असर पर सुनवाई की।
सुनवाई के दौरान सीजेआई जस्टिस चंद्रचूड़ ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रमुख प्रावधानों की व्याख्या करते हुए कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम को 2005 में संशोधित किया गया था। इसकी धारा 6 के बारे में कहा कि याचिका के मुताबिक अधिनियम की अधिसूचना के बाद और प्रतिस्थापन से पहले के कालखंड में उस हिंदू पुरुष की मृत्यु हो गई थी। ऐसे में यदि वह हिंदू संयुक्त परिवार संपत्ति रखता है तो उसका हिस्सा उत्तरजीविता द्वारा हस्तांतरित होगा, न कि अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार।
क्या शून्य या अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को हिंदू कानून के अनुसार माता-पिता की पैतृक संपत्ति में अधिकार होगा? सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर चर्चा की थी कि क्या पिता की मृत्यु से पहले काल्पनिक विभाजन के मामले में, शून्य या शून्यकरणीय विवाह से उक्त पिता से पैदा हुआ बच्चा उक्त काल्पनिक विभाजन में पिता द्वारा विरासत में मिली संपत्ति का हकदार होगा?
अपीलकर्ता पक्ष ने यह भी तर्क दिया कि मामला उन बच्चों से संबंधित है जिन्हें 1955 में हिंदू विवाह अधिनियम के लागू होने से पहले वास्तव में वैध माना जाता था। याचिकाकर्ताओं ने 14 अगस्त को हुई सुनवाई में कहा था कि 1955 से पहले, द्विविवाह कोई अपराध नहीं था। इसलिए दूसरी या तीसरी शादी से हुए सभी बच्चे सहदायिक होते थे। कोई हिंदू विवाह के लिए वैध और हिंदू उत्तराधिकार के लिए अवैध नहीं हो सकता। यदि किसी बच्चे को कानून के प्रयोजन के लिए वैध माने जाने की शर्त यह है कि उसका जन्म उसके पिता के यहां हुआ है, तो बच्चा सहदायिक होने की शर्तों को भी पूरा करता है।