हिंसा के शोर के बीच पश्चिम बंगाल में हुए पंचायत चुनाव के नतीजे आ रहे हैं. अब तक घोषित चुनाव नतीजों में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सबसे आगे है. पिछले चुनाव की तुलना में टीएमसी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है.
मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) दूसरे नंबर पर है. कांग्रेस और लेफ्ट के लिए भी नतीजे उत्साहजनक रहे हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अहम माने जा रहे पंचायत चुनाव नतीजों में किस पार्टी के लिए क्या संदेश है?
पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव नतीजों में टीएमसी खबर लिखे जाने तक 63229 ग्राम पंचायतों में से 38419 जगह जीत हासिल कर चुकी है. पार्टी के उम्मीदवार 567 ग्राम पंचायतों में आगे चल रहे हैं. टीएमसी कुल मिलाकर करीब 39 हजार पंचायतों में ‘गांव की सरकार’ बनाती नजर आ रही है. पिछले चुनाव में टीएमसी को 38118 सीटों पर जीत मिली थी. आंकड़े देखें तो टीएमसी 2018 से अधिक सीटें जीतने में जरूर सफल रही है लेकिन दूसरा पहलू ये भी है कि पार्टी की पकड़ कमजोर पड़ी हैं.
नंदीग्राम में भी TMC का अच्छा प्रदर्शन
पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में पिछले चुनाव में ग्राम पंचायत समिति की कुल संख्या 48649 ही थी और इस बार 63229. ऐसे में जब सीटों की संख्या में 14 हजार से अधिक का इजाफा हुआ, टीएमसी की सीटें महज एक हजार ही बढ़ीं. जिस अनुपात में कुल सीटों की संख्या बढ़ी है, उस अनुपात में टीएमसी की सीटें नहीं बढ़ पाई हैं.
इसी तरह पंचायत समिति के पिछले चुनाव में कुल 9217 में से 8062 सीटों पर टीएमसी को जीत मिली थी. अबकी 9730 सीटों पर चुनाव हुए और टीएमसी 6523 सीटें ही जीत सकी है. 220 सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार आगे चल रहे हैं. ममता बनर्जी की पार्टी को पिछली बार की तुलना में 1300 से अधिक सीटों का नुकसान होता नजर आ रहा है. जिला परिषद चुनाव में टीएमसी कुल 928 में से 820 से अधिक सीटें जीतती नजर आ रही है.
वरिष्ठ पत्रकार जयंतो घोषाल कहते हैं कि टीएमसी का वोट शेयर करीब-करीब स्थिर है. पार्टी ने 2013 और 2018 के बाद 2023 में भी अपना वोट शेयर बरकरार रखते हुए पंचायत चुनाव में जीत की हैट्रिक लगाई है. सीटें उस अनुपात में नहीं बढ़ी हैं जैसा टीएमसी उम्मीद कर रही थी. एंटी इनकंबेंसी झलक रही है. हालांकि, टीएमसी ने शुभेंदु अधिकारी के इलाके को छोड़ दें तो नंदीग्राम जिले में भी अच्छा प्रदर्शन किया है. उत्तर बंगाल में भी जहां मतुआ वोट निर्णायक है, वहां भी पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहा है, शांतनु ठाकुर के इलाके में भी. हर चुनाव अलग-अलग मुद्दों पर लड़े जाते हैं. टीएमसी का असली टेस्ट 2026 में होगा.
बीजेपी ने मजबूत की सियासी जमीन
बीजेपी ने पिछले चुनाव में ग्राम पंचायत की 5779 सीटें जीती थीं. पार्टी अब तक घोषित नतीजों में 13183 सीटें जीत चुकी है और 142 सीटों पर बीजेपी उम्मीदवार बढ़त बनाए हुए हैं. बीजेपी की सीटें 2018 के चुनाव की तुलना में दोगुने से भी अधिक बढ़ी हैं. पंचायत समिति के चुनाव में पिछली बार बीजेपी को 769 सीटें मिली थीं, वहीं पार्टी अब तक 964 सीटें जीत चुकी है और 50 पर आगे चल रही है. बीजेपी को पंचायत समिति चुनाव में भी दो सौ से अधिक सीटें मिलती नजर आ रही हैं. जिला परिषद चुनाव में भी बीजेपी को सीटों का मामूली लाभ होता नजर आ रहा है.
पंचायत चुनाव में बीजेपी के इस प्रदर्शन को सूबे में पार्टी की मजबूत होती सियासी जमीन का संकेत माना जा रहा है. जयंतो घोषाल ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि बीजेपी प्रदेश में जीरो से उठकर मुख्य विपक्षी पार्टी के मुकाम तक पहुंची है. बीजेपी लगातार मजबूत हो रही है. बीजेपी को विपक्ष की भूमिका से सत्ता तक का सफर तय करने के लिए एक जुझारू नेता चाहिए जिसका अभी अभाव नजर आ रहा है.
कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन को क्या मिला?
कांग्रेस और लेफ्ट गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरे थे. दोनों दलों की सीटें बढ़ी हैं. लेफ्ट ने 2018 चुनाव में 1713 के मुकाबले अबकी 6400 से अधिक ग्राम पंचायतें सीटें जीत ली हैं. कांग्रेस को भी पिछले चुनाव में 1066 के मुकाबले अबकी 3100 से अधिक सीटें मिली हैं. पंचायत समिति में पिछले चुनाव में लेफ्ट को 129 और कांग्रेस को 133 सीटें मिली थीं. दोनों दलों को मिलाकर जितनी सीटें मिली थीं, इस बार कांग्रेस अकेले उतनी सीटें जीतती नजर आ रही है. कांग्रेस ने 255 सीटें जीत ली हैं आठ सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार आगे चल रहे हैं.
लेफ्ट भी 170 से अधिक सीटें जीत चुका है. जिला परिषद में लेफ्ट को दो सीटों पर जीत मिली है. कांग्रेस भी आधा दर्जन से अधिक सीटें जीत चुकी है. साल 2018 और 2023 के चुनाव नतीजे देखें तो कांग्रेस और लेफ्ट की सीटें बढ़ी हैं. ग्राम पंचायत में दोनों दलों की सीटें करीब तीन गुना बढ़ी हैं तो वहीं पंचायत समिति में भी दोनों दलों का प्रतिनिधित्व बढ़ा है.
विपक्षी एकजुटता की कवायद पर क्या असर होगा?
पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के नतीजों का असर विपक्षी दलों को एकजुट करने के लिए चल रही कवायद पर पड़ना तय माना जा रहा है. पंचायत चुनाव में 2018 की तुलना में कहीं बेहतर प्रदर्शन के बाद कांग्रेस और लेफ्ट का मनोबल बढ़ा है. जयंतो घोषाल ने कहा कि गेंद कांग्रेस के पाले में है. कांग्रेस को तय करना होगा कि वो टीएमसी के साथ जाएगी या लेफ्ट के?