महाराष्ट्र ,15 दिसम्बर | Supreme Court : महाराष्ट्र राज्य की उस याचिका को बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। जिसमें सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) में एकत्रित जनगणना के आंकड़ों को साझा करने की मांग उद्धव सरकार की तरफ से की गई थी।
इस मामले पर सुनवाई करते हुए (Supreme Court) कोर्ट ने आंकड़ों को साझा करने का निर्देश देने की मांग पर आदेश नहीं दिया। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि राज्य सरकार ने इसे लागू करने के लिए जनगणना के आंकड़े मांगे थे।
स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को आरक्षण देने के लिए आंकड़ों को सार्वजनिक करने के लिए कहा गया था। जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने ने इस मामले पर सुनवाई की।
जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह बात अहम है कि केंद्र के उस हलफनामे को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। जिसमें कहा गया है कि 2022 में भी जातिगत जनगणना नहीं कराई जाएगी।
पीठ ने केंद्र सरकार के रुख पर ध्यान देते हुए रिट (Supreme Court) याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि एसईसीसी-2011 पिछड़े वर्गों के आकंड़ों और एसईसीसी-2011 के दौरान एकत्र किए गए जाति डेटा की गणना करने की कवायद नहीं थी।
डेटा सटीक नहीं था और त्रुटियों से भरा था
केंद्र ने एक हलफनामा दायर कर कहा कि उसने आगामी 2021 की जनगणना में जानकारी के संग्रह के लिए 7 जनवरी 2020 को एक अधिसूचना जारी की, जिसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से संबंधित जानकारी शामिल है। डेटा सटीक नहीं था और त्रुटियों से भरा था।
लेकिन जाति की कोई अन्य श्रेणी नहीं है। इसलिए, केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि आगामी 2021 की जनगणना में ग्रामीण भारत में बीसीसी से संबंधित सामाजिक-आर्थिक आंकड़ों की गणना को शामिल करने के लिए जनगणना विभाग को कोई निर्देश जारी न करें। ऐसे में कोर्ट ने भी सरकार की बात को माना और अभी डेटा जारी करने की याचिका को खारिज कर दिया।