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स्त्री पहली बार हो रही है चरित्रवान

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Woman is getting character for the first time
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रायपुर, 13 दिसम्बर | Charitravaan Stree : स्त्री ओर पुरूष् को समान हक होना चाहिए। यह बात पुरुष तो हमेशा ही करते हैं। सित्रयों में उनकी उतसुकता नहीं है, सित्रयों के साथ मिलते दहेज में उतसुकता है।

स्त्री से किसको लेना देना है ! पैसा,धन,प्रतिष्ठा ! हम बचचों पर शादी थोप देते थे।लड़का कहे कि मैं लड़की को देखना चाहता हूँ ,वह ठीक है। यह उसका हक है !

लेकिन लड़की कहे मैं भी लड़के को देखना चाहती हुँ. कि यह आदमी जिंदगी भर साथ रहने योग्य है भी या नहीं-तो चरित्र का ह्राष हो गया, पतन हो गया!और इसको तुम चरित्र कहते हो कि जिससे पहचान नहीं, सम्बन्ध नहीं कोई पूर्व परिचय नहीं, इसके साथ जिंदगी भर साथ रहने का निणर्य लेना।

यह चरित्र हे तो फिर अज्ञान क्या होगा फिर मूढ़ता क्या होगी?

पहली दफा दुनिया में एक स्वतंत्रता की हवा पैदा हुई है, लोकतंत्र की हवा पैदा हुई है। और सित्रयों ने उदघोष्णा की है समानता की, तो पुरुषों की छाती पर साँप क्यों लौट रहे हैं।

मगर मजा भी यह है की पुरुषों की छाती पर सांप लौट रहे है. यह तो ठीक, सित्रयों की छाती पर सांप लौट रहे हैं। स्त्रियों की गुलामी इतनी गहरी हो गई है कि उनको पता नहीं रहा कि जिसको वे चरित्र, सती सावित्री और क्या-क्या नहीं मानती रही हैं।

वे सब पुरुषों के द्वारा थोपे गए जबरदसती के विचार थे।

पश्चिम में एक शुभ घड़ी आई है। घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है। भयभीत होने का कोई कारन नहीं है। सच तो यह है की मनुष्य जाती अब तक बहुत चरित्रहीन ढंग से जी रही हैं, लेकिन ये चरित्रहीन लोग ही अपने को चरित्रहीन समझतें हैं।

तो मेरी बातें उनको लगती है की मैं लोगों का चरित्र खराब कर रहा हूँ।

और भारतीय स्त्रियां पश्चिम से आए फैशनों का अंधा अनुकरण कर रही है। अगर (Charitravaan Stree) स्त्री का सिगरेट पीना बुरा है तो पुरुष का सिगरेट पीना भी बुरा है। और आगर पुरुष को अधिकार है सिगरेट पीने का तो प्रत्येक स्त्री को भी सिगरेट पीने का अधिकार है।

कोई चिज बुरी है तो सबके लिए बुरी है और अच्छी है तो सबके के लिए अच्छी है। आखिर स्त्री में क्यों हम भेद करें। क्यों स्त्री के अलग मापदंड निर्धारित करे?

पुरुष अगर लंगोट लगाकर नदी में नहाए तो ठीक है और स्त्री अगर लंगोटी बांधकर नदी में नहाए तो चरित्रहीन हो गई। ये दोहरे माप दंड क्यों लोग कहते हैं इस देश की युवतियां पश्चिम से आए हैं सपनों का अंधानुकरण करके अपने चरित्र का सत्यानाश कर रही हैं।

जरा भी नहीं! एक तो चरित्र ही कुछ…।और पश्चिम में मैं चरित्र पैदा हो रहा है। अगर इस देश की (Charitravaan Stree) स्त्रियां भी पश्चिम की स्त्रियों की भांति पुरुष के साथ अपने को सकक्षम घोसित करें। तो उनके जीवन में भी चरित्र पैदा होगा और आत्मा पैदा होगी।

तुम्हारे चरित्र का एक ही अर्थ होता है बस, की स्त्री पुरुष से बंधी रहे चाहे पुरुष कितना भी गलत हो।

हमारे शास्त्रों में इसकी बड़ी प्रसंशा की गई है कि अगर कोई पत्नी अपने पति को बूढ़े, मरते, सड़ते कुष्ठ रोग से गलत पति को भी कंधे पर रख कर वेश्या के घर पहूँचा दी तो हम कहते हैं यह चरित्र है देखो क्या चरित्र है की मरते पति ने इच्छा जाहिर की कि मुझे वेश्या के घर जाना है.

और स्त्री उसको कांधे पर रख कर पहुंचा आई। इश्को गंगा जी में डूबा देना था तो चरित्र होता। यह चरित्र नहीं है सिर्फ गुलामी है। यह दस्ता है और कुछ भी नहीं ।

पश्चिम की स्त्री ने पहली दफा पुरुष के साथ समानता के अधिकार की घोषणा की है। इसको मैं चरित्र कहता हूँ।

लेकिन तुम्हारें चरित्र की बढ़ी अजीब बातें हैं। तुम इस बात को चरित्र मानते हो कि देखो भारतीय स्त्री सिगरेट नहीं पीती और पश्चिम की स्त्री सिगरेट पीती है।

लेखक-ओशो वाणी